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लेखनी कहानी -29-Sep-2023 फॉर्म हाउस

फॉर्म हाउस भाग 3

"सुनो"  "कहो"  हीरेन ने फाइलों में डूबे हुए ही कहा । हीरेन के इस व्यवहार से मीना बुरी तरह चिढ़ गई । हीरेन के हाथ से फाइल छीन कर फेंकते हुए बोली  "आपके लिये तो हम यहां 100 मील दूर से आए हैं और आप हैं कि अभी भी फाइलों में व्यस्त हैं । आप हमें प्यार तो करते हैं ना" ? मीना ने अपने एक हाथ से हीरेन का सिर ऊपर उठाकर उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा ।

मीना के इस तरह से पूछने पर हीरेन के अधरों पे एक मुस्कान आ गई । अब तक वह एक केस में पूरी तरह डूबा हुआ था लेकिन अब वह पूरे मूड में आ गया । वह पलक झपकते उठा और एक झटके में उसने मीना को अपनी मजबूत बांहों में समेट लिया और उसके अधरों को जोर से चूम लिया । मीना उसकी मजबूत बांहों में कसमसाने लगी । छूटने के लिए नहीं , बल्कि और अधिक कसावट के लिए  । मीना है ही ऐसी । हीरेन के लिए उसकी दीवानगी देखते ही बनती है । वह हीरेन से मिलने के लिए 100 मील दूर से चली आई । वह हीरेन से प्रेम नहीं करती बल्कि उसकी पूजा करती है । हीरेन ने जो डोज मीना को जोर से किस करके  दी थी, उतनी डोज पर्याप्त थी मीना के लिए । इससे वह खुश हो गई और हीरेन से लिपट गई । थोडी दार बाद हीरेन ने अपनी पकड़ ढ़ीली कर दी और मीना को अपने सामने की कुर्सी पर बैठा दिया ।  "कहिये क्या आदेश है ? बंदा आपकी खिदमत में हाजिर है" । हीरेन उसके सामने कमर तक झुकते हुए बोला ।  हीरेन की ऐसी अदाओं पर ही तो मीना मर मिटी थी । उसे कमर तक झुके हुए देखकर वह खुश होते हुए बोली "बताइये आप हमारी क्या खिदमत करेंगे" ? उसकी आंखों में चमक और होठों पे शरारत थी ।  "आप जो हुक्म करें । आप जैसे कहेंगी हम वैसे ही करेंगे" । हीरेन का अंदाज लखनवी हो गया था । आखिर लखनऊ में रहकर अंदाज लखनवी कैसे ना होता ?  "आप खुद समझिए कि हम क्या चाहते हैं और खुद ही इस काम को अंजाम दीजिए । देखते हैं कि आप हमें कितना जानते हैं" । मीना रहस्यमय तरीके से हंसी ।  पुरुषों में स्त्रियों को जानने का माद्दा ही कहां है ? जिसे देवता भी नहीं जान सके उसे एक साधारण सा आदमी कैसे जान सकता है ? हीरेन हथियार डालते हुए बोला  "तुम हसीनाओं को समझना तो खुदा के भी बस में नहीं है , फिर मेरी तो बिसात ही क्या है" ? उसके स्वर में कटाक्ष था  "बस, इतने में ही हथियार डाल दिये ? वैसे तो बड़े जासूस बनते हो और एक मामूली सी लड़की से हार गये" । मीना हीरेन को अंगूठा दिखाते हुए बोली ।  "जासूसी की बात अलग है मीना । यहां मामला जासूसी का नहीं , दिल का है । दिल के अखाड़े में जब दो पहलवान , एक हुस्न और दूसरा इश्क , लड़ते हैं तो जीत हमेशा हुस्न की ही होती है । इश्क हंसते हंसते हार जाता है । उसे हारने में ही आनंद आता है । मैं भला बरसों से चली आ रही इस रस्म से बाहर कैसे हो सकता हूं ? इश्क हमेशा हुस्न की पूजा करता आया है क्योंकि हुस्न मेहरबान तो इश्क पहलवान । तुम मेरी सब कुछ हो और तुम्हारे सामने मैं कुछ भी नहीं हूं मीना" । कहते कहते हीरेन मीना की गोदी में सिर रखकर लेट गया ।

"तुम हमेशा मुझे इसी तरह से हरा देते हो । मेरे जजबातों से खेलते हो और जीत जाते हो । तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम मेरी कमजोरी हो , बस , ऐसे ही प्रेम का जाल बिछाकर मुझे लूट लेते हो" । मीना भी हीरेन की ओर झुक गई और उसने हीरेन का माथा चूम लिया ।  "तो अब बताओ, हमें क्या करना होगा ? कहो तो आपके पैर दबा दें" ? हीरेन उसे आंख मारते हुए बोला ।

हीरेन के ऐसा कहते ही मीना रोने लग गई । हीरेन को समझ में नहीं आया कि उसने क्या गलत कह दिया है ? वह उससे माफी मांगते हुए बोला "सॉरी मीना । मैंने कुछ गलत कह दिया है क्या ? अनजाने में हुई गलती को माफ कर दो मीना । मुझे नहीं पता कि मैंने क्या गलत कहा है ? मुझे बताओ तो सही कि मैंने क्या गलती की है जिससे मैं भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराऊं ? प्लीज मीना , भगवान के लिए मुझे माफ कर दो" । हीरेन मीना के पैर छूने के लिए नीचे झुकता चला गया । हीरेन को ऐसा करते देख मीना तुरंत खड़ी हो गई और भागकर उससे दूर चली गई ।  "ये क्या अनर्थ कर रहे हो श्री ? मुझ पर पाप क्यों चढ़ा रहे हैं आप " ? मीना सुबकते हुए बोली ।  "मैं क्या अनर्थ कर रहा हूं मीना ? और मैंने कौन सा पाप चढ़ाया है तुम पर" ? हीरेन का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया ।  "श्री , आप जानते हैं कि हमें इस तरह का मजाक कतई पसंद नहीं हैं ? आप हमारे पैर छुऐंगे ? हमारे पैर दबाऐंगे ? आप हमारे प्राणाधार हैं श्री , हमारे मन मंदिर के देवता हैं । क्या मेरे पैर दबाना आपको शोभा देगा ? क्या हम आपको ऐसा करने देंगे ? आपने ये सोच भी कैसे लिया श्री ? ये अधिकार सिर्फ हमारा है श्री । ये हमारा काम है, आपका नहीं । हम आपको कहे देते हैं कि भविष्य में ना तो आप ऐसा कहेंगे और ना ही ऐसा करने का प्रयास करेंगे । हम आपकी पूजा करते हैं श्री । फिर आप ऐसे कैसे कह सकते हैं ? हम यह सब सुनकर शर्म से मर नहीं जाऐंगे क्या" ? मीना खड़ी खड़ी सुबकने लगी ।

अब हीरेन को समझ में आया कि उससे क्या गलती हुई है । उसने मीना को पकड़कर अपने पास खींच लिया और पीछे से उसे अपनी बांहों में कस लिया । उसे अपनी बांहों के झूले में झुलाने लगा ।  "ओह श्री ! आई लव यू वैरी मच" मीना के अधर हीरेन की ओर उठ गये ।  "आई लव यू ठू वैरी मच, डार्लिंग" । हीरेन ने बाकी का काम पूरा कर दिया । वे दोनों इसी मुद्रा में बहुत देर तक खड़े रहे जैसे समय ठहर गया हो । दोनों प्रेम के सागर में डूब गये थे । उन्हें यह भी अहसास नहीं रहा कि वह हीरेन का ऑफिस है, उसका घर नहीं है । हीरेन के स्टॉफ ने वह दृश्य देखा तो सब लोग आंखों ही आंखों में बातें करने लगे । लड़कियां मन ही मन मुस्कुराने लगीं । उन्होंने हीरेन का यह रूप पहली बार देखा था ।

इतने में हीरेन के चैंबर में उसके सेवक ने दस्तक दी । हीरेन को तब अहसास हुआ कि वह अपने ऑफिस में है । वह तुरंत मीना से अलग हुआ और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया । मीना तो शर्म के मारे जमीन में लगभग गढ़ ही गई थी ।  "सर , कोई आनंद बाबू आपसे मिलने आये हैं , कलकत्ता से" सेवकराम बोला  "कौन आनंद बाबू ! कलकत्ता से" ? कहते हुए हीरेन बाहर की ओर भागा । उसके स्टॉफ ने हीरेन को इस तरह भागकर किसी का स्वागत करते हुए पहली दफा देखा था ।

"अरे सर आप यहां ? मुझे आदेश दे दिया होता , मैं सिर के बल दौड़कर आ जाता । आपने क्यों कष्ट किया है सर ? आज मेरी यह कुटिया धन्य हो गई । जिस तरह शबरी की कुटिया में श्रीराम पधारे थे उसी तरह आज आप मेरे ऑफिस में पधारे हैं सर । आज मैं धन्य हो गया हूं सर । आज मेरा ऑफिस भी पवित्र हो गया है" । कहते कहते हीरेन सबके सामने आनंद बाबू के चरणों में लेट गया ।

हीरेन के इस व्यवहार ने आनंद बाबू को भाव विभोर कर दिया । उन्होंने हीरेन को पकड़कर ऊपर उठाया और अपने सीने से लगाकर कहा "अब तुम बहुत बड़े आदमी बन गये हो हीरेन । अब तुम बचपन वाले हीरेन कहां रहे हो ? अब तुम हीरेन जासूस हो गये हो । वो जासूस जिसका कोई तोड़ अभी तक पैदा नहीं हुआ है । इतने कम समय में तुमने जो मुकाम बनाया है वह अद्भुत है । तुम्हारी कामयाबी के किस्से रोज ही अखबारों में छपते रहते हैं । उन्हें पढ़कर मुझे बहुत संतोष मिलता है और फख्र से मेरी छाती चौड़ी हो जाती है । आखिर तुम मेरे बेटे जो हो" । कहते कहते आनंद बाबू भावुक हो गये ।  "पर आपने मुझे अपना बेटा कहां माना है, सर ? यदि माना होता तो आप इस तरह मेरे ऑफिस में आते क्या ? मुझे वहीं से आदेश देते कि हीरेन यहां पर आओ और मैं दौड़कर जाता । तब मैं मानता कि आपने मुझे अपना बेटा समझा है । लेकिन आपने वो मौका ही नहीं दिया मुझे" । हीरेन शिकायत करते हुए बोला ।  "अब यहीं खड़े खड़े बातें करोगे या अंदर भी ले चलोगे" ? आनंद बाबू ने हीरेन के गाल पर एक हलकी चपत लगाते हुए कहा ।  "ओह ! मैं तो भूल ही गया" । कहकर हीरेन आनंद बाबू का हाथ पकड़कर अपने चैम्बर में ले आया । मीना को देखकर आनंद बाबू ठिठक गये । तब हीरेन परिचय कराते हुए बोला  "मीना ! ये आनंद बाबू हैं । मेरे पिता तुल्य , संरक्षक, गुरू , मेण्टर, सब कुछ । और सर ये है मीना"  बीच में बात काटते हुए आनंद बाबू बोल पड़े  "जाने बहार , जानेमन , जानेजाना , जानेगुलिस्तां, जाने चमन , जाने तमन्ना , जाने...."  "बस बस सर । ज्यादा बोलोगे तो ये यहां से भाग जायेंगी । आज ही तो आई हैं ये कानपुर से" । हीरेन आनंद बाबू को रोकते हुए बोला ।  मीना आनंद बाबू के पैर छूने को खड़ी हुई तो आनंद बाबू ने उसे रोक दिया और मीना से कहने लगे "तुम तो बहुत बड़ी जौहरी निकलीं । एक अनमोल हीरा अपनी झोली में कर लिया है तुमने । तुम्हें पता है क्या" ? आनंद बाबू मीना की परीक्षा लेते हुए बोले ।  "हम जानते हैं सर । हमारे शिवजी ने इन्हें हमारी रक्षा के लिए ही यहां भेजा है । हम तो इनके चरणों की धूल के बराबर भी नहीं हैं । हम तो अहिल्या की तरह बुत बने हुए थे पर इन्होंने श्रीराम बनकर हमारा उद्धार कर दिया है । कभी कभी हम अपने भाग्य पर बहुत इतराते हैं सर जो हमें श्री का साथ मिला" । मीना भावुक हो गई थी ।  "श्री ! कौन श्री" ?  "आपके लाडले सर । हम इन्हें श्री ही कहते हैं" मीना की पलकें झुक गई थीं ।  "तुम धन्य हो गये हीरेन । तुम्हें तो साक्षात मीराबाई मिल गई है । अब तुम्हें श्रीकृष्ण बनना होगा हीरेन" । आनंद बाबू मुस्कुराते हुए बोले । इससे पहले कि हीरेन कुछ बोलता , मीना बोल पड़ी  "सर, श्री तो हमारे श्रीकृष्ण ही हैं । ये तो हमारा सौभाग्य है जो हमें श्री का साथ मिला । इसके लिए हम शिवजी को रोज धन्यवाद देते हैं । आप तो हमें आशीर्वाद दीजिए कि हमारी जोड़ी सदैव बनी रहे" । मीना ने आनंद बाबू के चरण स्पर्श कर लिए । आनंद बाबू ने उसे सदा सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दे दिया ।

हीरेन आनंद बाबू और मीना को लेकर अपने घर आ गया । खाना मीना ने तैयार किया । मीना बहुत अच्छा खाना बनाती है , ये बात आनंद बाबू ने भी कह दी थी । खाना खाने के बाद हीरेन और आनंद बाबू दोनों ड्राइंग रूम में आ गये और मीना किचिन समेटने में व्यस्त हो गई ।  "कैसे आना हुआ सर ? कोई तो खास बात है जो आपको यहां तक खींच लाई है" ? हीरेन के चेहरे पर उत्कंठा की लकीरें थीं ।  "हां, बात तो तुम सही कह रहे हो हीरेन । दरअसल बात यह है कि मेरी दूर की एक रिश्तेदार है । वह अभी जेल में बंद है । जेल में बंद हुए उसे साल भर से भी अधिक हो गया है । वह एक हत्या के आरोप में बंद है मगर वह कहती है कि उसने हत्या नहीं की है । सारे सबूत उसके खिलाफ हैं लेकिन वह फिर भी अपनी बात पर अडिग है । आज के जमाने में किसी पर पूर्ण विश्वास नहीं किया जा सकता है, लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन कहता है कि वह लड़की निर्दोष है । बस, इसीलिए मैं यहां चला आया हूं" ।  "क्या नाम है उस लड़की का" ? हीरेन कुछ सोचते हुए बोला  "रिषिता । रिषिता भट्ट" ।  "नाम तो कुछ सुना सुना सा लग रहा है" । हीरेन का दिमाग चारों ओर घूमने लगा ।  "जरूर सुना होगा । लगभग साल भर पहले एक नामी व्यवसायी राज मल्होत्रा की हत्या उसके फॉर्म हाउस में हुई थी , तब इस लड़की का नाम आया था उसमें" । आनंद पहेली को सुलझाते हुए बोले ।  "अब याद आ गया सर । राज मल्होत्रा की पत्नी लीना मल्होत्रा हमारी बार की सदस्य हैं सर । उनके साथ बहुत बुरा हुआ है सर । अब सब कुछ याद आ गया है सर । आप आदेश दें कि मुझे क्या करना है" ?  "करना क्या है , अपनी जासूसी के जलवे दिखाने हैं बस । दूध का दूध और पानी का पानी करना है । यदि कत्ल रिषिता ने किया है तो उसे हर हाल में सजा होनी चाहिए और यदि कत्ल उसने नहीं किया है तो उसे किसी भी हाल में सजा नहीं होनी चाहिए । इसलिए मैं ये चाहता हूं कि तुम रिषिता का केस अपने हाथ में ले लो" । आनंद बाबू ने बड़े आग्रह से यह बात कही थी ।  "पर यह तो 'ओपन एण्ड शट' केस है । इसमें तो करने को कुछ भी नहीं है । यह तो दीवार पर लिखी हुई इबारत की तरह साफ है कि खून रिषिता ने ही किया है । उसे सजा से कोई भी नहीं बचा सकता है । एक हारा हुआ केस है यह, सर" । हीरेन ने हताश होकर कहा ।  "मुझे ताज्जुब हो रहा है कि ये बात हीरेन कह रहा है ! वह हीरेन जिसके सामने "झूठ" पल भर में दम तोड़ देता है और सच सौ तालों में बंद होने के बाद भी सामने आ खड़ा होता है । हो सकता है कि रिषिता ने यह खून कर दिया हो पर यह भी हो सकता है कि यह खून रिषिता के मत्थे मढ़ दिया हो ? मेरे कहने से तुम यह केस ले लो हीरेन, फिर आगे रिषिता का भाग्य । तुमसे बेहतर जासूस और वकील आज की तारीख में तो कोई है नहीं । अब ये तुम पर निर्भर करता है कि तुम इस केस में से 'सत्य' को सौ तालों में से खींचकर ला पाते हो या नहीं । इस केस में अगली तारीख कल की ही है । मैं चाहता हूं कि तुम कल ही रिषिता की ओर से अदालत में पेश हो जाओ और अपना काम शुरू कर दो । अच्छा, अब मैं चलूंगा" । कहकर आनंद बाबू खड़े हो गये और चल दिये ।

उधर मीना बुरा सा मुंह बनाकर खड़ी थी ।  "अरे , ये तुम्हारा मुंह टेढा कब से हो गया है जानेमन" ? हीरेन हंसते हुए बोला ।  "रहने दो , बातें ना बनाओ । हम तो 100 मील दूर से आये हैं और जनाब के पास में हमारे लिए टाइम ही नहीं है । ठीक है , हम भी आज ही निकल जाते हैं" । मीना उदास मन से बोली   "ऐसे कैसे जाने देंगे भला हम आपको । आज तो हमने गोलगप्पे खाने और एक मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया है । बोलो मेरे साथ चलना है या वापस जाना है" । हीरेन शरारत से बोला ।  "आप हमें हमेशा ब्लैकमेल करते हैं । हम तो आप जैसे गोलगप्पे के साथ गोलगप्पे खाएंगे और एक गोलगप्पे को गोलगप्पे खाते हुए देखना भी चाहेंगे" मीना हीरेन को छेड़ते हुए बोली ।  "अच्छा ! ये बात है ? अभी ठहरो , ये गोलगप्पा बताता है कि गोलगप्पे कैसे खाये जाते हैं" ? और हीरेन ने मीना के गाल पर एक हलकी सी बाइट कर ली ।  "उई मां, मैं मर गई" । मीना मुक्का तानकर हीरेन के पीछे दौड़ने लगी ।

क्रमश:  शेष अगले भाग में  श्री हरि  1.10.23

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4 Comments

Punam verma

03-Oct-2023 08:17 AM

Nice

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RISHITA

01-Oct-2023 12:10 PM

Nice

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Punam verma

01-Oct-2023 09:24 AM

Nice

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